FAQS About Tablighi Jamaat in hindi|तबलीगी जमात के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

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FAQS About Tablighi Jamaat in hindi



तबलीगी जमात के फाउंडर कौन थे?

मौलाना मुहम्मद इलियास कांधालवी(रह)

तबलीगी जमात के फाउंडर और पहले अमीर थे।

उनका पूरा नाम मौलाना मुहम्मद इलियास बिनते मुहम्मद इस्माइल कांधलवी देहलवी है।

मौलाना मुहम्मद इलियास कांधालवी (रह)

कि पैदाइश सन 1885 ई (1302) में कांधाल जिला मुजफ्फर नगर ब्रिटिश इंडिया में हुआ था।

मौलाना मुहम्मद इलियास कांधालवी (रह)

को उनकी शुरुआती तालिमात उनके वालिद ने खुद दी निजामुद्दीन दिल्ली में, जिसमे उन्होंने अरबी ,फारसी और कुरान का हाफिजाह मुक्कमल किया।

उसके बाद वो मौलाना राशिद अहमद गंगोही( रह) के साथ बाकी तालीम के लिए आगे बड़े, फिर मौलाना राशिद अहमद गंगोही का 11 अगस्त 1905 ई 

गंगोह में इंतेकाल हो गया। उसके बाद मौलाना इलियास कांधालवी (रह) ने 1908 ई में मदरसा दारूल उलूम देवबंद में दाखिला लिया तब उनकी उम्र 20 साल कि हो चुकी थी। उन्होंने बाकी कि तालीम

मेहमूद हसन देवबंदी से हासिल की ।

मुहम्मद इलियास कांधालवी(रह) ने

1920 कि दशक कि शुरुआत में

देवबंद और सहारनपुर के नौजवानों कि की एक जमात बनाई और उन्हें मेवात भेजा इस्लामिक स्कूल और मस्जिदों में ,और तहरीक का एक नेटवर्क बनाया।

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने दीन कि तबलीग कि बरकत से इस तहरीक को कितनी कामयाबी और इज़्ज़त दी ये तो आपके सब के सामने है। लोगों ने दशकों से तबलीग को बदनाम करने कि बहुत कोशिश की लेकिन इज़्ज़त और जिल्लत का मालिक अल्लाह है।




तबलीगी जमात क्या है?

तबलीगी जमात में 3 दिन, 40 दिन या 4 महीने के लिए लोग अपने घरों को छोर कर निकलते है।

तबलीगी जमात का काम बस लोगों में दीन ए इस्लाम कि तबलीग (धर्म प्रचार) करना है, जिसके लिए लोग नजदीकी मस्जिदों या मरकज में जाकर जमात बनाते है,और अलग अलग शहरों और देशों में फैल जाते है, और वहां के मुकामी लोगों को मस्जिद में आने और नमाज़ कायम करने कि अपील करते है,और इसमें लोग एक दूसरे को कुरान कि तालीम देते है, और इस्लाम के मुताबिक जिंदगी गुजारने का तरीका सिखाते है, और इसमें 6 सब्जेक्ट है, जिसकी मदद से ये सारा काम होता है,जो ये है:कलमा ,नमाज़, इल्म , इकरामें मुस्लिम, इखलासे नियत, और दावत ओ तबलीग





तबलीगी जमात का नाम कैसे पड़ा?

मौलाना मुहम्मद इलियास कांधालवी (रह) ने एक बार कहां था, उन्हें इस तहरीक को नाम देना होता तो वो इसे तहरीक ए इस्लाम नाम देते पर जुनुबी एशिया के आलिमों ने इन्हे तबलीग जमात कहना शुरू कर दिया था। तभी से तहरीक ए इस्लाम तबलीग जमात हो गया।





तबलीग जमात का अमीर कौन है?


1995 में तबलीगी जमात के तीसरे अमीर मौलाना इनामुल हसन कांधालवी(रह) के वफात के बाद मौलाना साद साहब ने मरकज की जिम्मेदारी संभाली. तभी से वे तबलीगी जमात के अमीर है।




तबलीगी जमात का पहला इस्तेमा कब हुआ था?

1941 ई मेवात में पहला इस्तेमा हुआ था, जिसमे करीब 15 हजार लोगों ने शिरकत की थी, जिसमे बच्चे, बूढ़े, जवान कशिर तादाद शामिल में थे।




क्या बिना जमात में जुड़े तबलीग का काम कर सकते है?

कोई भी बिना जमात में जाए बिना भी तबलीग से जुड़ा रह सकता है।

आप अपने मोहल्ले के मस्जिद में जाकर

साप्ताहिक गस्त वाला अमल कर सकते है, और तालीम कर सकते है,और मस्जिद के मसवरे में जुड़ सकते है, ये सब तबलीगी जमात का अमल है।




तबलीग के लिए लोग किस किस देश में  जाते है?

अल्हमदुलिलाह तबलीग का काम 190 से 195 देशों में फैला हुआ है, और तबलीग जमात से दुनिया भर में 15 करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े है।





मेवात से ही क्यों शुरू हुआ तबलीग?


हरियाणा के मेवात इलाके में बड़ी संख्या में मुस्लिम रहते थे। इनमें से ज्यादातर काफी बाद में इस्लाम धर्म को स्वीकार किया था। 20वीं सदी में उस इलाके में ईसाई मिशनरी ने काम शुरू किया। बहुत से मेव मुसलमान ने ईसाई मिशनरी के प्रभाव में आकर इस्लाम मज़हब को छोड़ने लगे थे। यहीं से मौलाना मुहम्मद इलियास कांधालवी (रह) को मेवाती मुसलमानों के बीच जाकर इस्लाम को मजबूत करने का ख्याल आया। उस समय तक वह सहारनपुर के मदरसा मजाहिरुल उलूम में पढ़ा रहे थे। वहां से पढ़ाना छोड़ दिया और मेव मुस्लिमों के बीच काम शुरू कर दिया। 





तबलीग जमात का सबसे बड़ा मरकज कहां है?


भारत में दिल्ली के निजामुद्दीन में बंगले वाली मस्जिद दुनिया का सबसे बड़ा तब्लीगी जमात का मरकज है। 



   Message 


अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातहु।

जमात एक यूनिवर्सिटी कि तरह है, जहां स्टूडेंट भी आप है, और प्रोफेसर भी आप ही है।

इसमें 6 सब्जेक्ट होते है,

कलमा ,नमाज़, इल्म , इकरामें मुस्लिम, इखलासे नियत, और दावत ओ तबलीग।

तबलीग जमात का मकसद सिर्फ उम्माते मुस्लिम के अंदर से जहीलियत खत्म करना और इल्म को आम करना है।

लेकिन हम फिरकों में बटे हुए है, तबलीगी जमात से काफी मुसलमान सिर्फ इसलिए नहीं जुड़ते क्योंकि ये दूसरा फिरका है,

या इनका मसलक दूसरा है ।

और ये हाल खास तौर से हिंदुस्तान का है, यहां मुसलमानो कि तादाद तो बहुत है, पर न तो सियासत में कोई दखल है, यानी कोई ढंग का लीडर दूर दूर तक नजर नही आता  । और मुसलमानो की यहां न तो खुद कि कोई यूनिवर्सिटी है, और न ही स्कूल या कोई इंस्टीट्यूट है, हां कुछ चुनिंदा है, पर नाम के, और हमारी बच्चियां ऐसे स्कूलों में जाने को मजबूर है, जहां आज कल हिजाब बैन है, तबलीगी जमात और ऐसे ही कुछ तनजीमे दीन का काम करती है, तो हम मुसलमान ही उसमे रुकावट पैदा करते है।

आप सारे मुसलमान भाइयों से गुजारिश है, फिरक़ा वारियर छोड़िए तबलीग के काम से जुड़िए और अगर तबलीग जमात पसंद नही है, तो कुरान और हदीस के जरिए लोगों तक दीन पहुचाइए और इतना भी ना हो सके तो कम से कम अपने आस पास के मुसलमान भाइयों से नमाज़ कायम करने कि अपील कीजिए







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