सही बुखारी शरीफ़|SAHIH AL BUKHARI IN HINDI VOLUME 0 ,HADITH #3

0

सही बुखारी शरीफ़|SAHIH AL BUKHARI IN HINDI VOLUME 0 ,HADITH #3




नबी करीम (सल्ल०) पर वह्य का शुरूआती दौर अच्छे सच्चे और पाकीज़ा ख़्वाबों से शुरू हुआ। आप (सल्ल०) ख़्वाब में जो कुछ देखते वो सुबह की रौशनी की तरह सही और सच्चा साबित होता। फिर क़ुदरत की तरफ़ से आप (सल्ल०) तन्हाई पसन्द हो गए और आप (सल्ल०) ने ग़ारे-हिरा मैं ख़िलवत नशीनी (एकान्तवास) इख़्तियार फ़रमाई और कई-कई दिन और रात वहाँ मुसलसल इबादत और यादे-इलाही और ज़िक्र और फ़िक्र मैं मशग़ूल रहते। जब तक घर आने को दिल न चाहता तोशा (खाने-पीने का सामान) साथ लिये हुए वहाँ रहते। तोशा ख़त्म होने पर ही बीवी मोहतरमा ख़दीजा (रज़ि०) के पास तशरीफ़ लाते और कुछ तोशा साथ ले कर फिर वहाँ जा कर ख़िलवत गुज़ीं (एकान्तवासी) हो जाते, यही तरीक़ा जारी रहा यहाँ तक कि आप (सल्ल०) पर हक़ खुल गया और आप (सल्ल०) ग़ारे-हिरा ही में क़ियाम पज़ीर थे कि अचानक जिब्राईल (अलैहि०) आप (सल्ल०) के पास हाज़िर हुए और कहने लगे कि ऐ मुहम्मद! पढ़ो आप (सल्ल०) फ़रमाते हैं कि मैंने कहा कि मैं पढ़ना नहीं जानता। आप (सल्ल०) फ़रमाते हैं कि फ़रिश्ते ने मुझे पकड़ कर इतने ज़ोर से भींचा कि मेरी ताक़त जवाब दे गई। फिर मुझे छोड़ कर कहा कि पढ़ो! मैंने फिर वही जवाब दिया कि मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ। इस फ़रिश्ते ने मुझको बहुत ही ज़ोर से भींचा कि मुझको सख़्त तकलीफ़ महसूस हुई। फिर उसने कहा कि पढ़! मैंने कहा कि मैं पढ़ा हुआ नहीं हूँ। फ़रिश्ते ने तीसरी बार मुझको पकड़ा और तीसरी मर्तबा फिर मुझको भींचा, फिर मुझे छोड़ दिया और कहने लगा कि पढ़ो! अपने रब के नाम की मदद से जिसने पैदा किया और इन्सान को ख़ून की फुटकी से बनाया। पढ़ो और आपका रब बहुत ही मेहरबानियाँ करने वाला है। इसलिये यही आयतें आप (सल्ल०) जिब्राईल (अलैहि०) से सुन कर इस हाल में ग़ारे-हिरा से वापस हुए कि आप (सल्ल०) का दिल इस अनोखे वाक़िए से काँप रहा था। आप (सल्ल०) ख़दीजा के यहाँ तशरीफ़ लाए और फ़रमाया कि मुझे कम्बल ओढ़ा दो, मुझे कम्बल उढ़ा दो। लोगों ने आप (सल्ल०) को कम्बल उढ़ा दिया। जब आप (सल्ल०) का डर जाता रहा। तो आप (सल्ल०) ने अपनी बीवी मोहतरमा ख़दीजा (रज़ि०) को तफ़सील के साथ ये वाक़िआ सुनाया। और फ़रमाने लगे कि मुझको अब अपनी जान का ख़ौफ़ हो गया है। आप (सल्ल०) की बीवी मोहतरमा ख़दीजा (रज़ि०) ने आप (सल्ल०) को ढारस बँधाई और कहा कि आपका ख़याल सही नहीं है। अल्लाह की क़सम! आप को अल्लाह कभी रुसवा नहीं करेगा। आप तो बेहतरीन अख़लाक़ के मालिक हैं। आप तो कुंबा परवर हैं। बे-कसों का बोझ अपने सिर पर रख लेते हैं, मुफ़लिसों के लिये आप कमाते हैं, मेहमान नवाज़ी मैं आप बे-मिसाल हैं और मुश्किल वक़्त मैं आप हक़ का साथ देते हैं। ऐसी ख़ूबियों वाला इन्सान इस तरह बे-वक़्त ज़िल्लत और ख्व़ारी की मौत नहीं पा सकता। फिर मज़ीद तसल्ली के लिये ख़दीजा (रज़ि०) आप (सल्ल०) को वरक़ा-बिन-नौफ़ल के पास ले गईं जो उनके चचा ज़ाद भाई थे और ज़मानाए-जाहिलियत मैं नसरानी (ईसाई) मज़हब इख़्तियार कर चुके थे और इबरानी ज़बान के कातिब थे; चुनांचे इंजील को भी हसबे-मंशाए-ख़ुदावन्दी इबरानी ज़बान में लिखा करते थे। (इंजील सुर्यानी ज़बान में नाज़िल हुई थी। फिर उसका तर्जमा इबरानी ज़बान में हुआ। वरक़ा उसी को लिखते थे) वो बहुत बूढ़े हो गए थे यहाँ तक कि उनकी आँख की रौशनी भी रुख़सत (ख़त्म) हो चुकी थी। ख़दीजा (रज़ि०) ने उन के सामने आप (सल्ल०) के हालात बयान किये और कहा कि ऐ चचा ज़ाद भाई! अपने भतीजे (मुहम्मद (सल्ल०)) की ज़बानी ज़रा उन की कैफ़ियत सुन लीजिये वो बोले कि भतीजे आप ने जो कुछ देखा है उसकी तफ़सील सुनाओ। चुनांचे आप (सल्ल०) ने अव्वल से आख़िर तक पूरा वाक़िआ सुनाया। जिसे सुन कर वरक़ा बे इख़्तियार हो कर बोल उठे कि ये तो वही हस्ती (पाकबाज़फ़रिश्ता) है जिसे अल्लाह ने मूसा (अलैहि०) पर वह्य देकर भेजा था। काश! मैं आपके इस अहदे-नुबूवत के शुरू होने पर जवान उम्र होता। काश! मैं उस वक़्त तक ज़िन्दा रहता जबकि आपकी क़ौम आप को इस शहर से निकाल देगी। रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने ये सुन कर ताज्जुब से पूछा कि क्या वो लोग मुझको निकाल देंगे? (हालाँकि मैं तो उन मैं सच्चा और अमीन और मक़बूल हूँ) वरक़ा बोले हाँ ये सब कुछ सच है। मगर जो शख़्स भी आपकी तरह बात हक़ ले कर आया लोग उसके दुश्मन ही हो गए हैं। अगर मुझे आपकी नुबूवत का वो ज़माना मिल जाए तो मैं आपकी पूरी-पूरी मदद करूँगा। मगर वरक़ा कुछ दिनों के बाद इंतिक़ाल कर गए। फिर कुछ वक़्त तक वह्य का आना रुका रहा।


BOOK किताबे-वह्य के बयान में

BAAB (वह्य की शुरुआत) 

VOLUME 0

HADITH #3

Status: صحیح

Post a Comment

0 Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

To Top